भ्रष्टाचार पर चुप्पी क्यों? मंत्री ओपी चौधरी बताएं, वो 6 अधिकारी कौन हैं जिनकी गड़बड़ियों की फाइल दबा दी गई?
रायपुर,>>
भाजपा सरकार में मंत्री ओपी चौधरी पर एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गए हैं। कांग्रेस पार्टी ने उन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने जिन छह अधिकारियों की भ्रष्टाचार से जुड़ी फाइलें तैयार कीं, उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? क्या मंत्री चौधरी भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण दे रहे हैं? यह सवाल अब छत्तीसगढ़ की राजनीति के केंद्र में आ गया है।
कांग्रेस प्रवक्ता का तीखा प्रहार
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि यदि मंत्री ओपी चौधरी के पास भ्रष्टाचार से संबंधित फाइलें थीं, तो उन्होंने कार्रवाई क्यों नहीं की? उन्होंने कहा, “ओपी चौधरी को बताना चाहिए कि वो छह अधिकारी कौन हैं जिनकी फाइलें उन्होंने तैयार की थीं। अगर उन्होंने एसीबी (भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो) और ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा) से जांच की धमकी दी थी, तो अब चुप्पी क्यों साध रखी है?”
धनंजय ठाकुर ने गंभीर संदेह जताया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मंत्री ओपी चौधरी और इन अधिकारियों के बीच सांठगांठ हो, या फिर इन अफसरों के पास स्वयं चौधरी से जुड़े कोई संवेदनशील दस्तावेज हों, जिनके उजागर होने का डर मंत्री को कार्रवाई से रोक रहा हो?
क्या मंत्री चौधरी की भी भूमिका संदिग्ध?
कांग्रेस प्रवक्ता ने आगे कहा, “कहीं इन छह अधिकारियों की गड़बड़ियों में ओपी चौधरी की भी भूमिका तो नहीं रही? कहीं ऐसा तो नहीं कि चौधरी खुद किसी घोटाले का हिस्सा रहे हों और अब उसी के उजागर होने से डर रहे हों?”
धनंजय सिंह ठाकुर ने यह भी आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार भ्रष्ट और अनियमितता करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को खुला संरक्षण दे रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में ‘जीरो टॉलरेंस’ की बात केवल भाषणों तक सीमित है, ज़मीनी स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाए जा रहे।
मुख्यमंत्री को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए: कांग्रेस
कांग्रेस प्रवक्ता ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मांग की कि मंत्री ओपी चौधरी द्वारा की गई स्वीकारोक्ति के बाद उन्हें तत्काल मंत्री पद से हटाया जाए। “जब खुद मंत्री मान रहे हैं कि उन्होंने भ्रष्टाचार से जुड़ी फाइलें बनाई हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं की, तो यह स्पष्ट है कि वह कर्तव्यच्युत हुए हैं। ऐसे व्यक्ति को मंत्री पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।”
उन्होंने मुख्यमंत्री से यह भी मांग की कि वे तत्काल उन छह अधिकारियों की पहचान सार्वजनिक करें और उनके खिलाफ निष्पक्ष जांच का आदेश दें।
सरकारी प्रणाली में पारदर्शिता पर सवाल
कांग्रेस ने सवाल उठाया कि यदि सरकार वास्तव में पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों पर काम कर रही है, तो इन फाइलों की जानकारी अभी तक सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? ठाकुर ने कहा, “यह कोई व्यक्तिगत या गोपनीय मामला नहीं है। जब मंत्री ने खुद स्वीकार कर लिया है कि फाइल बनाई गई थी, तो जनता को जानने का हक है कि उनमें क्या था और किन अधिकारियों के नाम थे।”
क्या भाजपा सरकार के भीतर चल रही है अंदरूनी खींचतान?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला केवल भ्रष्टाचार का ही नहीं, बल्कि भाजपा सरकार के आंतरिक संतुलन और शक्ति संघर्ष का भी संकेत हो सकता है। यह आशंका जताई जा रही है कि मंत्री ओपी चौधरी के पास कुछ अधिकारियों के खिलाफ मजबूत सबूत हैं, लेकिन सत्ता के भीतर किसी उच्च पदस्थ व्यक्ति के दबाव में वे कार्रवाई करने से हिचक रहे हैं।
कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चौधरी को एक रणनीतिक मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे कि असंतोषी अधिकारियों को नियंत्रण में रखा जा सके। लेकिन इस प्रक्रिया में शासन की पारदर्शिता और जनता का विश्वास दोनों ही दांव पर लग रहे हैं।
क्या होगा चौधरी का अगला कदम?
अब यह देखना होगा कि मंत्री ओपी चौधरी इस पूरे विवाद पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। क्या वे उन अधिकारियों के नाम सार्वजनिक करेंगे? क्या वे फाइलों को जांच एजेंसियों को सौंपेंगे? या फिर इस मामले को नज़रअंदाज़ कर राजनीतिक दबाव में चुप रहेंगे?
राजनीतिक गर्मी तेज, विपक्ष हमलावर
इस मुद्दे को लेकर प्रदेश की राजनीति में गर्मी बढ़ गई है। कांग्रेस ने इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया है और आने वाले विधानसभा सत्र में इसे जोरशोर से उठाए जाने की संभावना है। कांग्रेस की रणनीति स्पष्ट है—भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को घेरना और भाजपा की ‘सुशासन’ की छवि को नुकसान पहुँचाना।
वहीं भाजपा खेमे में इस मुद्दे पर फिलहाल चुप्पी है। न तो मंत्री ओपी चौधरी और न ही मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की ओर से अब तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया आई है।
पारदर्शिता बनाम संरक्षण की लड़ाई
छत्तीसगढ़ की राजनीति में यह मामला अब पारदर्शिता बनाम संरक्षण की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। जहां एक ओर सरकार ‘सुशासन’ और ‘भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन’ की बात करती है, वहीं दूसरी ओर एक मंत्री द्वारा भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ फाइलें तैयार करने और फिर कार्रवाई न करने का खुला स्वीकार इस छवि को गहरा झटका देता है।
यदि मुख्यमंत्री सच्चे अर्थों में ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर अमल करना चाहते हैं, तो उन्हें न केवल मंत्री ओपी चौधरी से जवाब मांगना चाहिए, बल्कि उन छह अधिकारियों को भी सार्वजनिक कर उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई करनी चाहिए।