आस्था के नाम पर घोटाला: कांग्रेस और भाजपा दोनों कटघरे में

रायपुर >>
छत्तीसगढ़ में धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के नाम पर कथित घोटालों को लेकर एक बार फिर राजनीति और प्रशासन के गलियारों में हलचल मच गई है। अब यह साफ होता जा रहा है कि न केवल पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार, बल्कि वर्तमान भाजपा सरकार भी इसी प्रकार के सार्वजनिक धन के दुरुपयोग में संलिप्त हो सकती है।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और तत्कालीन श्रम कल्याण मंडल अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी (व्यापक) के नेतृत्व में आयोजित ‘बोरे-बासी’ कार्यक्रम में करोड़ों रुपये के गबन के आरोप कांग्रेस सरकार पर लगे हैं, वहीं भाजपा सरकार पर ‘कल्पराजीव कुंभ’ और ‘महाकुंभ’ जैसे आयोजनों में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लग रहे हैं।


बोरे-बासी : संस्कृति के नाम पर प्रचार और फंड का दुरुपयोग

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने श्रमिकों की सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक के रूप में 1 मई, श्रमिक दिवस पर ‘बोरे-बासी’ कार्यक्रम शुरू किया था। राज्य भर में बड़े पैमाने पर इस आयोजन को राज्य समर्थन से आयोजित किया गया। परंतु पर्दे के पीछे करोड़ों रुपये बिना किसी निविदा प्रक्रिया के खर्च कर दिए गए।

खबरों के अनुसार, एक ही दिन में करीब 7 करोड़ रुपये का भोजन तैयार कराया गया, लेकिन न तो लाभार्थियों की कोई सूची थी और न ही वितरण का कोई प्रमाण। दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि भोजन, बैनर, प्रचार सामग्री, मंच सजावट आदि के लिए भुगतान बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के किया गया और सारा खर्च श्रमिक कल्याण मंडल के फंड से उठाया गया।


भूपेश का पीआर अभियान और व्यापक की भूमिका पर सवाल

भूपेश बघेल पर आरोप है कि उन्होंने बोरे-बासी कार्यक्रम को आत्म-प्रचार और राजनीतिक ब्रांडिंग का साधन बना दिया। तत्कालीन मंडल अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी (व्यापक) ने इस आयोजन को क्रियान्वित करने में प्रमुख भूमिका निभाई।
नेशनल मीडिया में प्रचार और सोशल मीडिया पर ट्रेंड कराने के लिए एजेंसियों पर भारी खर्च किया गया।


बिना निविदा आयोजन, पारदर्शिता की अनदेखी

सबसे गंभीर आरोप यह है कि पूरा आयोजन बिना औपचारिक निविदा प्रक्रिया के किया गया। अनुबंध मनमाने तरीके से वितरित किए गए और कार्यक्रम के बाद जल्दबाजी में भुगतान कराए गए, ताकि जांच से बचा जा सके।


भाजपा सरकार भी सवालों के घेरे में

भाजपा के सत्ता में आने के बाद उम्मीद थी कि बोरे-बासी घोटाले की जांच होगी, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार उच्चस्तरीय जांच की योजना बना रही है।


कल्पराजीव कुंभ और महाकुंभ पर भी आरोप

भाजपा सरकार के ‘कल्पराजीव कुंभ’ और ‘महाकुंभ’ जैसे आयोजनों पर भी करोड़ों के खर्च और अनियमितताओं के आरोप लग रहे हैं। बिना प्रक्रिया के ठेके दिए गए, प्रचार सामग्री पर भारी खर्च हुआ और कई ठेके राजनीतिक संबंधों के आधार पर बांटे गए।


जनता के सामने बड़ा सवाल: किस पर विश्वास करें?

जब कांग्रेस पर बोरे-बासी आयोजन में भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो अब भाजपा पर धार्मिक आयोजनों में धन के दुरुपयोग का संदेह है। जनता जानना चाहती है कि उनके कर के पैसे का उपयोग सही तरीके से हो रहा है या नहीं।

अगर कांग्रेस ने पांच वर्षों में जनकल्याण योजनाओं की आड़ में फंड का दुरुपयोग किया, तो भाजपा सरकार 15 महीनों में ही सवालों के घेरे में आ गई है।


निष्पक्ष जांच और सार्वजनिक रिपोर्ट की मांग

कई सामाजिक संगठनों और जागरूक नागरिकों ने इन आयोजनों की निष्पक्ष जांच और उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की है। दोषी चाहे किसी भी दल से हों, उन्हें सजा मिलनी चाहिए।

यदि इन मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो यह मुद्दा आगामी चुनावों में एक बड़ा भावनात्मक मुद्दा बन सकता है।


आस्था का राजनीतिक लाभ के लिए दोहन

छत्तीसगढ़ में धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के नाम पर जिस तरह से सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया गया, वह एक गंभीर सवाल उठाता है — क्या ये आयोजन वास्तव में आस्था और परंपरा के लिए थे, या फिर सिर्फ प्रचार और मुनाफाखोरी का माध्यम?

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